Property Rights: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे प्रॉपर्टी अधिकारों को लेकर एक नई मिसाल कायम हो गई है। कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि विवाहित बहन को भी पारिवारिक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। यह फैसला उन मामलों के लिए अहम है जहां भाई-बहनों के बीच पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद होता है। कोर्ट ने कहा कि विवाह के बाद भी बहन का अपने पैतृक हक से कोई संबंध नहीं टूटता और वह उत्तराधिकार कानून के तहत बराबर की हकदार है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक चल रहे संपत्ति विवाद में सुनाया, जिसमें भाइयों ने दलील दी थी कि विवाहित बहन को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलना चाहिए। कोर्ट ने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि विवाह के बाद भी बहन का कानूनी हक बना रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि बहनों को संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलना चाहिए।
हिंदू उत्तराधिकार कानून में बदलाव
यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 6 के तहत लिया गया है, जिसमें 2005 में संशोधन किया गया था। संशोधन के बाद बेटियों को बेटे के समान अधिकार दिए गए थे, लेकिन कई बार विवाहित बहनों को हक से वंचित किया जाता रहा। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर साफ निर्देश देकर रास्ता खोल दिया है कि चाहे बहन शादीशुदा हो या अविवाहित, उसका हिस्सा बराबर रहेगा।
संपत्ति विवादों में आएगा बदलाव
यह फैसला उन परिवारों के लिए राहत है जहां वर्षों से संपत्ति को लेकर बहनों को नजरअंदाज किया जा रहा था। इससे कई लंबित मामलों में तेज़ी आ सकती है और बहनों को न्याय मिल सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि पैतृक संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ है, तो बहन को उसका पूरा वैधानिक हिस्सा मिलना चाहिए, चाहे वह शादीशुदा हो या नहीं।
फैसले का सामाजिक असर
इस ऐतिहासिक फैसले का असर सिर्फ कानूनी स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक सोच पर भी पड़ेगा। पारंपरिक सोच यह रही है कि शादी के बाद बेटी पराया धन हो जाती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच को नकार दिया है। इस निर्णय से महिलाओं के अधिकारों को और मज़बूती मिलेगी और उन्हें परिवार की संपत्ति में बराबरी का दर्जा प्राप्त होगा।
वकीलों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि इससे महिलाओं को न्यायिक रूप से सशक्त किया गया है। संपत्ति कानून में व्यावहारिकता लाने के लिए यह कदम जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ कानून का पालन ही नहीं किया बल्कि सामाजिक सुधार की दिशा में भी एक कदम बढ़ाया है।
आवेदन और दस्तावेज की प्रक्रिया
यदि किसी विवाहित बहन को उसके हिस्से का अधिकार नहीं मिल रहा है, तो वह सिविल कोर्ट में केस दाखिल कर सकती है। इसके लिए उसे पैतृक संपत्ति से जुड़े दस्तावेज, जन्म प्रमाण पत्र, विवाह प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर की प्रति आदि जैसे दस्तावेजों की जरूरत होगी। कोर्ट में सही दस्तावेजों और सबूतों के आधार पर वह अपना हक पा सकती है।
डिस्क्लेमर
यह लेख विभिन्न मीडिया स्रोतों और अदालती फैसलों के आधार पर तैयार किया गया है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी भी कानूनी निर्णय या प्रक्रिया से पहले संबंधित विभाग या योग्य वकील से परामर्श जरूर लें। यह जानकारी केवल जागरूकता के उद्देश्य से दी गई है।